अक्षर ब्रह्म है
अक्षर अक्षर साथ मिलकर बनते हैं शब्द
शब्द शब्द एकजुट हो
वाक्य में ढल जाता है
वाक्य अनुभूति को
आरम्भ से श्रीइति तक
जन-जन के हृदय में ले आता है
सद्ग्रन्थ यही दर्शाता है
साहित्य में वर्णित
भूत में घटित
भविष्य में कोई न हो चकित
हृदय में अंकित होता साकार
साकारता नए आकार का
आकार ज्ञान-विज्ञान का
सज्ञान है नव-विहान का
यही आकार
हृदय में करता दीप प्रज्जवलित
टीम स्वतः तिरोहित होकर
ज्योतिपुंज बनकर
परमेश्वर की महिमा बताता है
ब्रह्म के स्वरूप को दर्शाता है
अक्षर यही तो दर्शाता है।
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कामेश्वर निरंकुश।
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