तेरे हर जख़्म पर मरहम लगाऊँ,
मेरी आदत है।
न जाने क्यों, मगर फिर भी, तुम्हे
मुझसे अदावत है।।
मेरे डर से तेरी हो रहगुज़र,
इतनी तमन्ना है।
जो तुझसे दूर है, हर रात ही
जैसे क़यामत है।।
तेरी नज़रें हैं खंजर, दिल मेरा
हर सिम्त घायल है।
तेरी मदहोश करती चाल, अल्ला
कैसी शामत है।।
कली गुलाब की है या कि ये,
रुखसार हैं तेरे।
इन्हें छू लूँ, इन्हें चूमूँ, ये हसरत
और आफत है।।
तेरी एक हाँ से मुझको जीने का
मकसद तो मिल जाता।
' निरंकुश ' मर रहा है लोग कहते
हैं सलामत है ।।
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