नारी की अस्मिता
राजधानी में घटी
बलात्कार की छौंक से
देश क सभी शहरों से
खांसने की आवाज
दूर दूर तक जाती है
जोरो का शोर
नारेबजियाँ
'बलात्कारी को फांसी दो'
हर एक और से आती है।
दिन बीतें
घाव अभी भरे भी नहीं
दिखने लगे दुष्परिणाम
कसने की छोड़
ढीली पड़ गई लगाम।
समाचार की सुर्खिओं में
प्रत्येक चैनल पर
नारियों के साथ छेड़खानी
बलात्कार की घटनाएँ
प्राथमिकता देकर दिखाई जाती है
नारियों की अस्मिता खतरे में
सुनाई जाती है।
क्या इसी से होगा समाधान
कहाँ निकला प्रावधान
मनोवृति बदले
संस्कार जगाएँ
व्यर्थ न चिल्लाएँ
नारी को उपहास का पात्र न बनाएँ।
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