होली महान है
कल ही रात
मेरे नन्हे ने
मेरे लल्ले ने
मेरे बेटे ने
मुझसे पूछी यह बात
होली में सभी लगाते हैं
तरह तर के रंग
चेहरा हो जाता है बदरंग
फिर भी क्यूँ झलकती है
सुबके चेहरे पर उमंग ?
बेटे ! यह भारतीय संस्कृति की छाप है
सब में रही व्याप्त है
वसंत के आगमन पर विविध रंग
पलाश के फूल लाल
कनैले का पीला
गुलाब की गुलाबी
वनमंजरी का नीला
फुलवारी में खिलता सदा बहार सफ़ेद
नवरंग में सजा अभेद
धरा पर इधर से उधर तन जाता है
दूब घांस का हरा गलीचा बन जाता है
पत्तों पर पसरी ओस
मोती बन मुस्काती है
कहीं चिड़िया चहचहती है
कोयल कूक सुनाती है
भ्रमर गूंजते हुए नज़र आते हैं
पक्षी गण कलरव कर अघाते हैं
इसे ही ऋषि मुनियों ने जाना है
प्रकृति की छटा को पहचाना है
उसी से सीख कर
मस्त हो जाता है अंग
चेहरे पर रहती है उमंग
बेटा सुनते सुनते सो गया
मैं एक अलग ही दुनिया में खो गया
याद कर बीते कल का बवाल
स्वयं से करने लगा सवाल
हमारे देश में
अलग अलग प्रदेश में
आतंक के नाम पर
अबीर के बदले
रेल की पटरी किसने उड़वाई ?
हमारे रक्षकों ने अपनी जान
अपने ही भाइयों से क्यों गावाई?
पिचकारी में रंग के बदले
बन्दूक पिस्तौल से क्यूँ गोली आई ?
क्या यह होली कर सकेगा भरपाई ?
अगर बेटा यही सवाल लेकर आता
तो मैं उसे कैसे समझाता ?
ऐसे पावन पर्व को राजनीतिक पंडों से बचाइए
ईश्वर की हम अनुपम वरदान हैं
वसंत ऋतू स्वयं इसका प्रमाण है
होली महान है
धर्म जाति वर्ग भूलकर
मानव धर्म में आईये
परोपकार का रंग
अपनापन की अबीर
राष्ट्रीय त्यौहार में लगाइए
ऐसे होली मनाईये !!!!
कल ही रात
मेरे नन्हे ने
मेरे लल्ले ने
मेरे बेटे ने
मुझसे पूछी यह बात
होली में सभी लगाते हैं
तरह तर के रंग
चेहरा हो जाता है बदरंग
फिर भी क्यूँ झलकती है
सुबके चेहरे पर उमंग ?
बेटे ! यह भारतीय संस्कृति की छाप है
सब में रही व्याप्त है
वसंत के आगमन पर विविध रंग
पलाश के फूल लाल
कनैले का पीला
गुलाब की गुलाबी
वनमंजरी का नीला
फुलवारी में खिलता सदा बहार सफ़ेद
नवरंग में सजा अभेद
धरा पर इधर से उधर तन जाता है
दूब घांस का हरा गलीचा बन जाता है
पत्तों पर पसरी ओस
मोती बन मुस्काती है
कहीं चिड़िया चहचहती है
कोयल कूक सुनाती है
भ्रमर गूंजते हुए नज़र आते हैं
पक्षी गण कलरव कर अघाते हैं
इसे ही ऋषि मुनियों ने जाना है
प्रकृति की छटा को पहचाना है
उसी से सीख कर
मस्त हो जाता है अंग
चेहरे पर रहती है उमंग
बेटा सुनते सुनते सो गया
मैं एक अलग ही दुनिया में खो गया
याद कर बीते कल का बवाल
स्वयं से करने लगा सवाल
हमारे देश में
अलग अलग प्रदेश में
आतंक के नाम पर
अबीर के बदले
रेल की पटरी किसने उड़वाई ?
हमारे रक्षकों ने अपनी जान
अपने ही भाइयों से क्यों गावाई?
पिचकारी में रंग के बदले
बन्दूक पिस्तौल से क्यूँ गोली आई ?
क्या यह होली कर सकेगा भरपाई ?
अगर बेटा यही सवाल लेकर आता
तो मैं उसे कैसे समझाता ?
ऐसे पावन पर्व को राजनीतिक पंडों से बचाइए
ईश्वर की हम अनुपम वरदान हैं
वसंत ऋतू स्वयं इसका प्रमाण है
होली महान है
धर्म जाति वर्ग भूलकर
मानव धर्म में आईये
परोपकार का रंग
अपनापन की अबीर
राष्ट्रीय त्यौहार में लगाइए
ऐसे होली मनाईये !!!!
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