Wednesday, 10 August 2016

बहुत अच्छा होता

बहुत अच्छा होता
राजनेताओं के बदले
शहीदों
स्व्तंत्रता सेनानियों
राष्ट्र प्रेमियों के नाम
संस्थान
राष्ट्रीय पथ
योजना
प्रतिष्ठान
परिवहन का नाम रखा जाता
उनकी कुर्वाणियों का ऋण देश चुकाता
हर जगह उनकी ही गाथा गाया जाता।

वेदना

व्यथा हृदय की
पीड़ा मस्तिष्क की
मात्र अनुभूति है
अभिव्यक्ति के लिए
शब्द सर्वदा अक्षम
अभाव यथार्थ का तिरोहित
मूक वाणी में सन्निहित
वाणी परायों के लिए
मौन वरेण्य
सहिष्णुता, धैर्य और श्रेय
पीड़ा में जिजीविषा
अनन्य प्रेम का प्रतीक
और मुमूर्षु
प्रेम का
निकटता का
लगाव का
अपनेपन का
विरामचिह्न !

      ***

आदिवासी

निश्छल
निष्कपट
पत्ते-झाड़-फूल
सुसज्जित
आदिम जनजाति की संस्कृति बिखेरती
मांदर की थाप पर थिरकती
झूमती नाचती गाती
कृत्रिमता से दूर
वन की सुंदरियाँ
कूदती फाँदती
वनक्षेत्र की तितलियाँ
हँसी की सम्मोहक फुहारें उँडेलती
श्रद्धा से
अपनेपन से
सहृदयता से
आगन्तुकों को
अपने प्रदेश में
भिन्न भिन्न परम्परा के वेष में
कहती हैं
जोहार!

जंगल से प्रेम
वन-जंतुओं से दोस्ती
चौड़ा वक्ष
चमकता ललाट
श्याम वर्ण
हँसुली की छाप
गोदाये हुए दाग
अर्द्धनग्न वस्त्र
कर्तव्यपरायणता में प्रवीण
अधिकार से विमुख
अपनी धुन में लीन
मांसल देह
बलिष्ठ भुजाएँ
नम्रता से झुकी आँखें
भेदभाव
लाभ-लोभ से दूर
आदिम जनजातियों के वंशज
आदिवासी
कंधे पर झूलते तीर-कमान
प्रबल व्यक्तित्ववान
जीवन अथक
गतिमान
हम हैं झारखंडी
हमें है अभिमान।
      *****

फेसबुक के यार

अँधेरा
खामोशी
और तनहाई
दूर भगाता है मित्र
खुशियाँ लुटाता है मित्र।

जान न पहचान
फेसबुक पर जुड़े
दो चार चैटिंग किए
बन गई पहचान
थोड़ी सी ऑनलाइन
दूर दराज रहनेवाले
एक दूसरे के करीब
नज़र ही नहीं जाती
कौन है अमीर कौन है गरीब
छुट्टियों में मजा
एक दूसरे की मदद
अकेलेपन का साथी
हर बातें साझा करने का साथी
नई पीढ़ी की नई दुनिया
यानि आप
फेसबुक के मित्र
बुरे लोग कहाँ नहीं होते
पर सब बुरे नहीं होते
सतर्क होकर मित्र बनाया
आपके करीब आया
मित्रता दिवस के दिन
फेसबुक के यार
सभी को नमस्कार
निरंकुश का जोहार।

कविता

जीवन का सार है कविता
शालीनता का दरबार है कविता
कविता जन्मती है
सृष्टि रचयिता के वन्दन से
नारी की करुण क्रंदन से
बच्चों की किलकारी से
किशोरों की आपाधापी झखमारी से
युवाओं की बलिष्ठ भुजाओं से
वृद्धों की अनुभवी सुझावों से
कुशल नेतृत्व की अगुआई से
श्मशान की कड़वी सच्चाई से
छले गए समाज से
घुटनवाली आवाज़ से
ग़रीब की असहाय बेटी से
भूख से बिलखती रोटी से
सज्जन की सच्चाई से
श्रमिकों के पैर की
फटी हुई विवाई से
माँ के मृदुल दुलार से
बहना के प्यार से
भाई की बेईमानी से
राजनीतिज्ञों की मनमानी से
सैनिकों की श्रीविजय से
न्यायालय के निर्णय से
समाज के कुठाराघात से
अपनों द्वारा घात-प्रतिघात से
लहलहाते खेतों से
तपती हुई रेतों से
बहती हुई धार से
तीक्ष्ण वाणी की कटार से
झरते हुए झरनों से
सुहागिन की गहनों से

कविता अब चाहती है
अर्द्धविराम !

थकान भरी ज़िन्दगी से
अपनी ही बन्दगी से
स्वर धीमा हो
कथ्य की सीमा हो
अब कविता
हीरे-सी अँगूठी में
नहीं गढ़ी जायेगी
भावनाओं में नहीं बह पाएगी
यह सत्य है
कविता के लिए
हरी-भरी झाड़ियों के साथ
दुर्गम खुरदरे पर्वत हों
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी हो
राजपथ से दूर हो
भावनाओं से भरपूर हो
तभी मिलेगा विराम।
         *****

संकट मोचक चक्रव्यूह

हो  गया  संकट  मोचक  चक्रव्यूह   तैयार ।

आतंकवादी   को  पनाह   दे   रहा  है  पाक
क्रूर  आतंकी कर  प्रशिक्षित दर्शाता है धाक
आतंकवादी के समर्थक हो जाओ होशियार।
हो गया संकट .......

भारत  कभी नहीं चाहता  तुमसे करना युद्ध
बहुत  तुम   ललकार चुके अब हुए हम  क्रुद्ध
सीमा पर तैनात सेना  है कर  रही चीत्कार।
हो गया संकट .......

अब्दुल हमीद की धरती  को तुमने है ललकारा
भगत सिंह सुखदेव सभी अब भी हमें है प्यारा
बहुत  सहे  अब  मेरी  बारी हम कर रहे हूँकार।
हो गया संकट .......

भूल  गए तुम  कारगिल- युद्ध हे धूर्त अभिमानी
भले  जान  गंवाई  हमने  पर कभी हार न मानी
घुसपैठिए  छद्मभेष  में  तुम मत  करना  टँकार।
हो गया संकट .......

जय  जवान के अनुगूँज से अब सेना में  उत्कर्ष
अंग  अंग अब  फड़क  उठा  है करना  है संघर्ष
अब  देखना  मेरा तांडव  हम  कर रहे  ललकार।
हो गया संकट .......
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