Thursday, 31 October 2013

श्रद्धांजलि राजेन्द्र यादव

'हंस' को अमृत रूपी दूध पिलानेवाला 
हिंदी साहित्य का चितेरा 
सारे बंधनों को तोड़ कर 
सदा के लिए चला गया। 
हिंदी साहित्याकाश के देदीप्यमान  नक्षत्रो में 
स्थायी स्थान उसने बना लिया।
हिंदी के वृक्ष पर काँव काँव कर रहे कौवों में से
अब प्रेमचंद्र के 'हंस' को 
पुनर्जीवित करने वाले की कमी को कोन भर पाएगा।
तुम तो चले गए 
सदा के लिए मौन हो गए, परन्तु 
'प्रेत बोलते हैं'
'सारा आकाश' विद्यमान है 
'अनदेखे अनजान पुल' पर 
'शह और सात प्रमुख उपन्यास' संग 
'एक इंच मुस्कान' दृष्टव्य है। 
हिंदी साहित्य में
नयी कहानी की शुरुवात करनेवाले 
महामनीषी !
साहित्यकार !!
राजेंद्र यादव!!!
श्रद्धा-सुमन अर्पित 
शत् शत् नमन